Modern History in Hindi | संपूर्ण आधुनिक भारत का इतिहास

Modern History in Hindi – खास तौर पर यह नोट्स UPSC की प्रारंभिक परीक्षा के लिए है। जब आप यूपीएससी जैसे कठिन परीक्षा की तैयारी रहे है तो आपको ज्ञात होगा की यूपीएससी परीक्षा के माध्यम से आपकी समझ को परखती है। इसलिए यह जरूरी है की आपका अध्ययन इस प्रकार से हो जिससे आपको सफलता मिले। 

हमने इस नोट्स मे आधुनिक भारत के इतिहास के टॉपिक्स का विभाजन इस प्रकार किया है जिससे आप तथ्यों को उदाहरण की तरह देखोगे और अतीत मे होने वाले राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझ पाओगे। 

आधुनिक भारत का इतिहास के टॉपिक्स (Modern history in Hindi)

आधुनिक भारत के इतिहास का अध्ययन करने के लिए हमने इसे निम्नलिखित खंडों व उपखंडों मे विभाजित किया है। 

  • 18 वीं शताब्दी का इतिहास
    • पूर्वार्ध
    • उत्तरार्ध
  • उपनिवेशवाद (Colonialism)
    • वाणिज्यिक चरण (1757-1823)
    • औद्योगिक चरण (1823-1858)
    • वित्तीय चरण (1858 के बाद)
  • राष्ट्रवाद (Nationalism)
    • भारत मे राष्ट्रवाद
    • आधुनिक राष्ट्रीयकरण और सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन
    • भारतीय कॉंग्रेस की स्थापना, नरपंथी तथा चरमपंथी (1885-1907)
    • सूरत के विभाजन से लेकर प्रथम विश्वयुद्ध तक (1907-1914)
    • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव (1914-1919)
    •  भारतीय राजनीति मे गांधीजी का उदय; असहयोग आंदोलन, स्वराजी एवं परिवर्तनवादी (1919-1924)
    • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की प्रवृतियाँ (1929-1935)
    • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन तथा द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945)
    • भारत स्वतंत्रता एवं विभाजन की ओर (1945-1947)
  • स्वतंत्रता उपरांत; 1947 के बाद भारत

18वीं सदी का भारत का इतिहास

18वीं शताब्दी का पूर्वार्ध

औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया तथा इसका विखंडन व क्षेत्रीय राज्यों का उदय होने लगा। इन्हे हम निम्न समूहों मे देख सकते है। 

मुगल के उत्तराधिकारी राज्य – बंगाल, अवध, हैदराबाद

मुगल के विद्रोही राज्य – सिख, जाट, मराठा, अफ़गान

मुगल की परिधि के बाहर राज्य (स्वायत राज्य) – मैसूर, कालीकट, त्रावणकोर। 

इस काल की विशेषता यह है की भारत मे यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों की गतिविधियाँ, उनका आपस मे संघर्ष तथा ब्रिटिश कंपनी का व्यापारिक कंपनी से राजनीतिक शक्ति के रूप मे उभरना। 

भारत मे यूरोपीय कंपनियों का आगमन

  • पुर्तगाली
  • डच
  • ब्रिटिश
  • फ्रांसीसी

कर्नाटक युद्ध

  • प्रथम कर्नाटक युद्ध (1744-1748)
  • द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754)
  • तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758-1763)

बंगाल विजय

  • प्लासी का युद्ध (23 जून 1757)
  • बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764)

उपनिवेशवाद

उपनिवेशवाद का वाणिज्यिक चरण (1757-1823)

इस चरण मे ब्रिटिश कंपनी का उद्देश्य था की वे अधिकतम रूप मे राजस्व का संग्रह करे ताकि उसके एक बड़े भाग को भारतीय व्यापार मे निवेश कर सके। इस काल मे कंपनी ने अपनी राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक नीतियाँ आपने इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बनाई। 

राजनीतिक नीति व राजनीतिक परिवर्तन

इस काल मे ब्रिटिश कंपनी की नीति यथासंभव युद्ध व विलय को टालना था क्यूंकि युद्ध खर्चीले होते थे। हालांकि उन्हे व्यापारिक हित के संवर्द्धन के लिए युद्ध भी करने पड़े और कुछ भू भाग को अधिग्रहण भी किया। इस काल मे ब्रिटिश कंपनी ने जो नीति अपनाई थी, उसे घेरे की नीति (policy of ringfence) कहा जाता है। अर्थात शत्रु राज्यों को मित्र राज्यों से घेरना। सहायक संधि प्रणाली भी उसी का हिस्सा थी। 

राबर्ट क्लाइव (1765-1767)

वेर्लेस्ट (1767-1769)

प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध

  • मद्रास की संधि (1769)

कार्टीयर (1769-1772)

वॉरेन हेस्टिंग (1772-1785)

प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध

  • प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775-1782)- सूरत की संधि, पुरंदर की संधि, बड़गांव की संधि, सालबाई की संधि (1782)
  • सालसेट और एलिफेंटा द्वीप अंग्रेजों को प्राप्त हुआ। 
  • कंपनी और मराठों के साठ 20 वर्षों का शांति का काल आरंभ हुआ। 

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध

  • इस युद्ध का नेतृत्व हैदर अली ने किया परंतु कैंसर से उसकी मृत्यु हो गई। 
  • हैदर अली का पुत्र टीपू सुल्तान से इस युद्ध को जारी रखा। 
  • 1784 में मेंगलौर की संधि के साथ युद्ध समाप्त हुआ। 

लॉर्ड कार्नवालिस (1786-1793)

तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790-1792)

  • टीपू सुल्तान के त्रावणकोर पर हमला करने के साथ युद्ध आरंभ हुआ। 
  • ब्रिटिश ने मराठे और निजाम को अपने पक्ष मे कर लिया। 
  • टीपू सुल्तान पराजित हुआ और उसे श्रीरंगपट्टनम की अपमानजनक संधि करनी पड़ी। 
  • उसे 3 करोड़ 30 लाख युद्ध हर्जाना के रूप मे देने पड़े। 
  • ब्रिटिश कंपनी न मलाबार, डिंडीगुल, बरामहल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को कब्जे मे लिया।

जॉन शोर (1793-1798)

लॉर्ड वेलेस्ली (1798-1805)

फ्रांसीसी प्रसार को रोकने के लिए लॉर्ड वेलेस्ली को भारत भेजा गया। उसने दो तरह की नीति अपनाई – युद्ध की नीति तथा सहायक संधि प्रणाली

चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799)

  • फ्रांसीसी कंपनी से टीपू सुल्तान की निकटता अंग्रेजों ने खतरे के रूप मे देखा
  • 1799 मे मेजर स्टुअर्ट और आर्थर वेलेस्ली को युद्ध के लिए भेज गया। 
  • आपने राजधानी श्रीरंगपट्टनम किले की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान मारा गया। 
  • ब्रिटिश कंपनी ने मैसूर का थोड़ा स भाग निकालकर ओड्यार वंश के राजकुमार को सौंप दिया। 
  • शेष बचे मैसूर के बड़े भू भाग को ब्रिटिश मद्रास क्षेत्र मे मिल लिया तथा 1801 मे मद्रास प्रेसिडेंसी की स्थापना की। 

द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध

  • पेशवा बाजीराव द्वितीय, दौलतराव सिंधिया, यशवंत राव होल्कर के बीच आपस मे प्रतिस्पर्धा। 
  • यशवंत राव होल्कर ने पेशवा बाजीराव को पराजित कर पूना पर कब्जा कर लिया। 
  • पेशवा ब्रिटिश से सहायता मांगने चला गया तथा उसे लॉर्ड वेलेस्ली के साथ बेसिन की संधि कर ली जो एक सहायक संधि थी। 
  • इस संधि ने अन्य मराठा प्रधानो की राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रभावित किया। 
  • ब्रिटिश के विरुद्ध सिंधिया और भोंसले ने मोर्चा बनाया, गायकवाड़ निष्पक्ष रहा तथा यशवंत राव ने अपना पृथक मोर्चा बनाया। 
  • दूसरी तरफ वेलेसली ने मराठों के विरुद्ध दो कमान बनाए। उत्तरी कमान जिसका नेतृत्व लॉर्ड लेक कर रहे थे तथा दक्षिणी कमान जिसका नेतृत्व आर्थर वेलेसली ने की। 
  • दक्षिण मे आर्थर वेलेसली ने सिंधिया और भोंसले की संयुक्त सेना को पराजित किया। 
  • उत्तर मे लॉर्ड लेक ने सिंधिया और भोंसले की संयुक्त सेना को हराया तथा अलीगढ़, दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। 
  • एक बार फिर दिल्ली का नियंत्रण मराठों के हाथ से निकलकर ब्रिटिश के नियंत्रण मे चल गया और पुनः नेत्रहीन मुगल शासक शाह आलम द्वितीय कंपनी का पेंशनभोगी बना। 
  • 17 दिसंबर 1803 को भोंसले और कंपनी के बीच देवगांव की संधि हुई। 
  • 30 दिसंबर 1803 को सिंधिया और कंपनी के बीच सुर्जी-अर्जनगाँव की संधि हुई। 
  • यशवंत राव होल्कर ने जाट शासक के साथ मिलकर इस युद्ध को जारी रखा। 
  • कंपनी ने अनुभव किया की निरंतर युद्ध खर्चीले साबित हो रहे है। अंत मे कोर्ट ऑफ डायरेक्टर ने वेलेसली को लंदन बुला लिया। 
  • इसके बाद कंपनी का एक वरिष्ट सदस्य जार्ज बार्लो ने 24 दिसंबर 1805 को यशवंत राव होल्कर के साथ राजपुर घाट की संधि की। 
  • राजपुर घाट की संधि के साथ द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध समाप्त हुआ। इसका परिणाम यह था की इसने मराठा संघ को तोड़ दिया और कंपनी भारत मे सर्वोच्च शक्ति के रूप मे उभर चुकी थी।

आर्ल ऑफ मिंटो (1807-1813) 

ब्रिटिश कंपनी भारत के प्रशासनिक संरचना मे कोई बड़े परिवर्तन नहीं लाना चाहती थी क्यूंकि वे आपने दायित्व को सीमित रखना चाहती थी जिससे उनका खर्च कम से कम से हो। इस काल मे कंपनी से केवल राजस्व तथा न्याय व्यवस्था मे सुधार किया जिसका कारण दीवानी न्याय का राजस्व न्याय से जुड़ा होना।

रॉबर्ट क्लाइव, वेर्लेस्ट एवं कार्टियर

द्वैध शासन प्रणाली

  • कंपनी का दीवानी शक्ति पर प्रत्यक्ष नियंत्रण तथा निजामत (प्रशासन) पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण
  • ब्रिटिश कंपनी ने एक उपनवाब पड़ का सृजन किया
  • नवाब की शक्ति छिन कर उपनवाब के पद पर निहित कर दिया। 
  • उपनवाब के पद की नियुक्ति कंपनी के अनुशंसा के द्वारा की जाती थी। 
  • इस प्रणाली ने बंगाल मे भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन दिया। इसका भयानक परिणाम था 1770 के दशक का अकाल जिसमे बंगाल मे लगभग 1/3 जनसंख्या खत्म हो गई। 

वॉरन हेस्टिंग्स 

भू-राजस्व सुधार

  • प्रस्तावित फ़ार्मिंग प्रणाली लाई। 
  • इसमे नीलामी मे अधिकतम बोली लगाने वाले को राजस्व संग्रह करने का अधिकार दिया जाता था। 

न्यायिक सुधार

  • जिला फौजदारी और सिविल कोर्ट की व्यवस्था की गई। 
  • इसमे मुस्लिम कानूनों के आपराधिक न्याय मे लागू किया गया। 
  • हिन्दुओ के लिए हिन्दू कानून तथा मुसलमानों के लिए मुस्लिम कानून को बनाए रखा गया। 
  • विधि संग्रह के रूप मे कोड ऑफ जेन्टु लॉज, कोलब्रुक्स आदि का संग्रह किया गया। 
  • कलकता मे सादर फौजदारी अदालत तथा मुर्शिदाबाद मे सादर फौजदारी अदालत की स्थापना की गई। 
  • वॉरन हेस्टिंग्स के द्वारा हिन्दू और मुस्लिम कानूनों का संहिताकरण किया गया। 

लॉर्ड कार्नवालिस

भू-राजस्व सुधार – स्थायी बंदोबस्त (1793)

  • जमींदारों को भूमि का स्वामी घोषित किया गया तथा किसानों को अधीनस्थ रैयातों के रूप मे परिवर्तित कर दिया गया। 
  • इसके अलावा सामुदायिक भूमि को भी जमींदार के निजी स्वामित्व मे रख दिया गया। 
  • कंपनी ने जमींदारों से प्राप्त करने वाली भू-राजस्व राशि को हमेशा के लिए निश्चित कर दिया। 
  • सूर्यास्त कानून को लागू किया गया इसके तहत अगर जमींदार देय तिथि को देय राशि चुकाने मे असमर्थ होती तो उसकी जमींदारी छिनकर नीलाम कर दी जाती थी।
  • यदि रैयत देय तिथि को भू-राजस्व की राशि चुकाने मे असमर्थ हो जाती तो उसकी चल एवं अचल संपत्ति को जमींदार के द्वारा नीलम कर दी जाती थी। 

न्यायिक सुधार – पुलिस व्यवस्था

  • भारत मे पुलिस व्यवस्था का जनक लॉर्ड कार्नवालिस को कहा जाता है। 
  • प्रत्येक 400 वर्ग मील क्षेत्रफल मे एक थाना की स्थापना की गई। 
  • थाने को एक दरोगा नामक अधिकारी के अंतर्गत रखा गया। 
  • दरोगा नामक अधिकारी के ऊपर एक पद का सृजन किया गया जिसका नाम सुपरिटेनडेंट ऑफ पुलिस रखा गया था। 

दीवानी अदालत

  • दीवानी न्यायलाओ का एक पदानुक्रम स्थापित किया –
  • किंग-इन-काउन्सल > सदर दीवानी अदालत > प्रांतीय न्यायालय > जिला अदालत > रजिस्ट्रार की अदालत > मुंसिफ़ अदालत

फौजदारी अदालत

  • सादर निजामत अदालत > सर्किट न्यायालय > जिला न्यायालय 

सिविल सेवा

  • लॉर्ड कार्नवालिस को सिविल सेवा का जनक कहा जाता है। 
  • 1793 के कार्नवालिस संहिता के आधार पर जिला कलेक्टर से न्यायिक शक्ति ले ली। 
  • उसके पास केवल राजस्व का अधिकार रहने दिया गया
  • उसके वेतन व सुविधाओं को बढ़ा दिया गया। 

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