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ToggleHistory Notes in Hindi – उपनिवेशवाद क्या है? अंग्रेजों ने किस प्रकार भारत को उपनिवेश बनाया? इस क्रम मे उनकी क्या-क्या नीतियां रही? इस विषय से संबंधित हम उन बिंदुओं पर चर्चा करेंगे जो आपके UPSC, State PSC, SSC एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षा परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
वैसे तो अंग्रेजी कंपनी भारत मे व्यापार करने के उद्देश से भारत मे आई थी। भारतीय वस्तुओ के बदले मे उन्हे ब्रिटेन से बहुत सारे धन चुकाने पड़ते थे। यह बात अंग्रेजों को बहुत चुभती थी। अतः वे एक ऐसा रास्ता ढूंढ रहे थे जिससे भारत के धन से ही भारतीयों उत्पादों को खरीदा जाये तथा उसे यूरोप मे निर्यात किया जाये।
प्लासी और बक्सर के युद्ध मे मिली सफलता के पश्चात अंग्रेजों को बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा का दीवानी अधिकार प्राप्त हो गया जिससे उनकी यह समस्या भी दूर हो गई। अब उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा राजस्व वसूली करना था तथा उसके एक बड़े हिस्से से भारतीय उत्पादों को खरीदकर यूरोप मे निर्यात करना था।
उपनिवेशवाद क्या है?
- एक ऐसी विचारधारा जो मातृदेश (जो कमजोर देश को उपनिवेश बनाता है) के हित के अधीन होता है अर्थात कोई एक देश दूसरे देश के भू भाग पर कब्जा कर लेता है तथा उसकी अर्थव्यवस्था का दोहन आपने हित को पूरा करने के लिए करता है, उसे उपनिवेशवाद कहते है।
- उपनिवेशवाद का स्वाभाविक परिणाम औपनेविशिक देश मे गरीबी एवं पिछड़ापन होता है।
- इसका अनचाहा परिणाम होता है विकास। उदाहरण के लिए भारत मे अंग्रेजों ने रेलवे एवं आधुनिक शिक्षा का विकास किया।
- उपनिवेशवाद का संबंध मूलतः आर्थिक होता है परंतु यह राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे को भी प्रभावित करता है।
- ब्रिटेन मे पूंजीवाद का जो चरण था उसके अनुसार अंग्रेजों ने भारत मे आर्थिक नीति मे परिवर्तन करते रहे। उसी के अनुकूल उसकी राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक नीतियों मे बदलाव आया।
पूंजीवाद क्या है?
एक ऐसी आर्थिक प्रणाली जो मुनाफा के आधार पर कार्य करती है। इसके तीन चरण होते है –
- वाणिज्यिक पूंजीवाद – व्यापार के माध्यम से मुनाफा कमाना
- औद्योगिक पूंजीवाद – वस्तुओं का उत्पादन एवं विनिमय करके मुनाफा कमाना
- वित्तीय पूंजीवाद – पूंजी का प्रयोग करके मुनाफा कमाना
अंग्रेजों का भारत को उपनिवेश बनाने की नीति
भारत को उपनिवेश बनाने के संदर्भ में ब्रिटेन मे पूंजीवाद के चरण अनुसार अंग्रेजों की नीतियाँ बदलती रही है। इसे हम तीन चरणों मे देख सकते है –
- प्रथम चरण – उपनिवेशवाद का वाणिज्यिक चरण (1757 – 1813)
- दूसरा चरण – उपनिवेशवाद का औद्योगिक चरण (1813 – 1858)
- तीसरा चरण – उपनिवेशवाद का वित्तीय चरण (1858 तथा उसके पश्चात)
प्रथम चरण – उपनिवेशवाद का वाणिज्यिक चरण
- इस चरण मे ब्रिटेन मे वाणिज्यिक पूंजीवाद का चरण था। अर्थात व्यापार के माध्यम से मुनाफा कमाना। अतः उनकी भारत मे उपनिवेशवाद की नीतियाँ इसी पर आधारित थी।
- भारत से ज्यादा से ज्यादा राजस्व का संग्रह करना तथा उसका एक बड़ा भाग व्यापार में निवेश करना।
- आपने दायित्व को सीमित करना जिससे काम से काम खर्च हो और ज्यादा से ज्यादा बचत
- इस चरण मे ब्रिटिश कंपनी की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सभी नीतियाँ इसी उद्देश्य से प्रेरित रही थी।
दूसरा चरण – उपनिवेशवाद का औद्योगिक चरण
- इस चरण मे ब्रिटेन औद्योगिक पूंजीवाद चरण के चरण तक पहुँच गया था। अर्थात ब्रिटेन मे औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हो गई थी।
- अब ब्रिटेन को उद्दोग के लिए कच्चे माल की आवश्यकता हुई एवं विनिर्मित वस्तुयों को बेचने के लिए बाजार चाहिए था।
- भारत मे अंग्रेजों की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक नीतियाँ अब इन्ही उद्देश्यों से प्रेरित थी।
तीसरा चरण – उपनिवेशवाद का वित्तीय चरण
- औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन मे अधिक मात्रा मे पूंजी का संचय हो गया।
- अब उनका उद्देश पूंजी को निवेश कर मुनाफा कमाना था।
- 1858 के बाद भारत मे ब्रिटिश पूंजी का आगमन होने लगा जो रेलवे, खनन क्षेत्र, नौपरिवहन क्षेत्र, चाय, कॉफी इत्यादि क्षेत्रों मे लगाई गई।
- इस चरण मे अंग्रेजों की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक नीतियाँ इन्ही उद्देश्यों से प्रेरित थी।
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