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Toggleभारत में यूरोपीयों का आगमन
15वी-16वी सदी में यूरोप में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई पड़ते है। जैसे- पुनर्जागरण, भौगोलिक खोज, घर्म-सुधार आंदोलन इत्यादि। इन परिवर्तनों के कारण पश्चिमी यूरोपिय देश विशेषकर पुर्तगाल, स्पेन, हॉलैंड, ब्रिटेन फ्रांस इत्यादि देशों मे समुद्रि मार्ग से व्यापार के लिए इन देशों की व्यापारिक कम्पनियां 15वीं सदी के अंतिम देशक एवं 16वी-17वी सदी मे भारत आते है।
यूरोपियन कम्पनियों के द्वारा भारतीय शासको से व्यापारिक केन्द्र खोलने की अनुमति मांगी जाती है। व्यापार पर एकाधिकार को लेकर इन कम्पनियों और संबधित राष्ट्रों के मध्य युद्ध भी होते हैं। यहां तक की कई अवसरों पर भारतीय शासकों या राज्यों से भी युद्ध होते है।
इन व्यापारिक कम्पनियों में 18वी सदी के मध्य तक आते-आते ब्रिटेन की इस्ट इंण्डिया कंपनी ने भारत में कई केन्द्र स्थापित किये जैसे- बाम्बे, कलकता, मद्रास, सूरत, पटना, हुगली इत्यादि।
यूरोपियन कंपनियों के आगमन का क्रम
- पुर्तगाली
- डच
- ब्रिटिश
- डेनिश
- फ्रांसीसी
पुर्तगाली
- पूर्तगलियों ने भारत मे आने के लिए वैकल्पिक मार्ग की खोज की।
- मसालों के व्यापार के उद्देश्य से भारत आये थे।
- भारत मे आने के पश्चात सर्वप्रथम उन्होंने कोच्चि (केरल) मे एक किला बनवाया।
- 1505 मे गवर्नर का पद स्थापित किया। पहला गवर्नर डी-अलमीडा बना फिर उसका उतराधिकारी अलबुकर्क हुआ।
- 1509 मे उन्होंने ओरमुज पर कब्जा कर लिया। फिर ओरमुज से लेकर मलक्का तक एक बड़े सामुद्रिक साम्राज्य किया तथा इसे एस्टाडो द इंडिया कहा।
- 1510 मे गोवा को जीत लिया। फिर भटकल नामक जगह पर किले बनवाया।
- पुर्तगीजो ने एशिया मे खुले समुद्र की नीति का उल्लंघन कर एक एक कार्तेज प्रणाली का व्यवस्था किया।
डच एवं ब्रिटिश
- 17वी सदी के आरंभ मे डच एवं ब्रिटिशों का भारत मे आगमन हुआ।
- उनके आगमन से पुर्तगीजो का व्यापारिक एकाधिकार खत्म हो गया।
- आरंभ मे डच एव ब्रिटिश कंपनी भी मसाले के व्यापार के उद्देश्य से आई थी।
- आगे चलकर व्यापार को लेकर डच एवं ब्रिटिश का लम्बा संघर्ष चला।
- ब्रिटिश ने 1622 तक ओरमुज का क्षेत्र पुर्तगीजो से छीन लिया एवं ओरमुज से लेकर बंगाल की खाड़ी तक के क्षेत्र को नियंत्रित कर लिया।
- बंगाल की खाड़ी से मलक्का तक के व्यापार को डचो ने नियंत्रण किया।
- दोनों कंपनियों की पहचान जॉइन्ट स्टॉक कंपनी के रूप मे की जाती थी। ये नई पीढ़ी की कंपनियां थी एवं इनका प्रबंधन प्रोफेशनल था।
- आगे चलकर डच एवं ब्रिटिश कंपनियों ने भारत के सूती एंव रेशमी का भी व्यापार करने लगी।
- ये क्रमशः दक्षिण पूर्व एशिया तथा यूरोप मे सूती एवं रेशमी वस्त्रों का बड़ा बाजार स्थापित किया।
- इसके अतिरिक्त ये नील, अफीम, शोरा इत्यादि का भी निर्यात करती थी।
- वे भारत से निर्यात व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया जिसे व्यापारिक क्रांति के नाम से जाना जाता है।
फ्रांसीसी
- भारत मे इस कंपनी की स्थापना 1644 मे हुई थी। यह सबसे बाद मे भारत मे आई थी।
- 1668 मे उसने पहले फैक्ट्री सूरत मे स्थापित की।
- आगे उसने मसूलिपट्टम एवं पांडिचेरी तथा अन्य क्षेत्रों मे फैक्ट्री स्थापित की।
- फ्रांसीसी कंपनी ने ब्रिटिश कंपनी को सबसे अधिक चुनौती दिया।
यूरोपियन कंपनियों का उद्देश
यूरोपियन कंपनियों का मुख्य उद्देश्य था – भारत में व्यापार विशेषकर कपड़ों एवं मसालों के व्यापार से अधिकाधिक मुनाफा अर्जित करना। व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था।
अतः ब्रिटिश सहित सभी कंपनियों की इच्छा थी भारत पर नियंत्रण स्थापित करके भारतीय राजस्व से भारतीय उत्पादों को खरिदा जाये। प्रारंभिक 5 प्रयासों में इन कंपनियो को विशेष सफलता नहीं मिली। लेकिन की 18वी सदी के मध्य में परिस्थितियां विस्तार के लिए अनुकूल थी और अंग्रेजो ने इसका लाभ उठाया।
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