कर्नाटक युद्ध (Carnatic wars)- History Notes in Hindi

कर्नाटक युद्ध

अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के मध्य भारत में राजनीतिक सर्वोच्चत को लेकर 3 युद्ध लड़े गये।

कर्नाटक का प्रथम युद्ध (1746-48)

  • यह युह ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार के युद्ध का विस्तार माना जाता है। साथ ही दोनो कंपनीयों की महत्वकांक्षा भी इसके लिए उतरदायी थी।
  • 1748 में एक्स-ला-शापेल (जर्मनी) की संधि के द्वारा यह युद्ध समाप्त हुआ।
  • नोट – 1746 में फ्रांसीसियों ने सेंट थोमे या अडयार के युद्ध में कर्नाटक के नवाब की सेना को पराजित किया।

कर्नाटक का द्वितीय यद्ध (1749-54)

  • दोनों कम्पनियों की महत्वकांक्षा तथा हैदराबाद एवं कर्नाटक में उत्तराधिकार का संघर्ष युद्ध का कारण बना।
  • यह यद्ध हैदराबाद में नासिर जंग और मुजफ्फर जंग एवं कर्नाटक में अनवरुद्दीन और चांदा साहेब के मध्य लड़ा गया।
  • इस युद्ध मे ब्रिटिश नासिर जंग और अनवरुद्दीन का समर्थन किये एवं फ़्रांसीसियों ने मुजफ्फर जंग और चांदा साहेब की सहायता किये। 
  • 1749 में अम्बूर की लड़ाई में फ्रांसीसी गुट की जीत हुई।
  • अंग्रेजों में इसका प्रतिरोध किया और इसने अग्रेजों की तरफ से क्लाइव, लॉरेंस इत्यादि अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  • इसी संदर्भ में अर्काट (कर्नाटक की राजधानी) एवं तिरुचिरापल्ली के युद्ध का उल्लेख होता है। इसमे अग्रेजों ने साहस का परिचय दिया।
  • अंतत: 1754 में कर्नाटक पर अंग्रेजो का अप्रत्यक्ष प्रभाव स्थापित हुआ और फ़्रांसीसियों का हैद‌राबाद पर। दोनों में सर्वोच्च कौन है इसका फैसला अभी तक नहीं हो पाया ।
  • 1755 में दोनों कॉम्पनियों के बीच पांडिचेरी की संधि हुई।
  • नोट- अंग्रेजों के दवाव में फ्रांसीसी सरकार ने डुप्ले को हटाया।

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1758-63)

  • दोनो कम्पनियों की महत्वकांक्षा तथा यूरोप एवं ऊत्तरी अमेरिका में सप्तवर्षीय युद्ध के कारण भारत में भी युद्ध की शुरुआत हुई।
  • 1760 में वांडिवाश की लड़ाई में अंग्रेजो ने फ्रांसीसीयों को निर्णायक रूप से पराजित किया। (ब्रिटिश सेनापति आयरकुट ने फ्रांसीसी गर्वनर लाली को पराजित किया।)
  • 1763 में पेरिस की संधि हुई। फ़्रांसीसियों ने भारत में सेना न रखने और फ्रांसीसी व्यापारी केन्द्र की किलेबंदी न करने का आश्वासन दिया ।

ब्रिटिश विस्तार के दृष्टिकोण से कर्नाटक युद्ध का महत्व

  • अंग्रेजों ने अपने एक महत्वपूर्ण प्रतिद्वंदी फांसीसीयों को रास्ते से हटाया। 
  • उत्तराधिकार का युद्ध विस्तार के लिए अवसर बन सकता है यह अनुभव आगे भी उपयोगी साबित हुआ।
  • राजनीतिक एकता की कमी का भी लाभ उठाया जा सकता है।
  • भारतीय सैौनिको को यूरोपिय तरीके से प्रशिक्षित किया जाये तो उनकी तरह ये भी भोग्य साबित होंगे।
  • नियमित वेतन दिया जाये तो निष्ठा से लड़ेंगे।
  • यूरोपियन तरीके से परिक्षित सेना एवं आधुनिक हथियार के दम पर भारतीय राज्य के बड़ी सेना को भी पराजित किया जा सकता है।

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