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ToggleCaste System in India – भारत में जाति व्यवस्था क्या है?
भारत में जाति व्यवस्था एक श्रम विभाजन की व्यवस्था है। भारत में जाति व्यवस्था का जन्म वर्ण व्यवस्था से हुआ है। वर्ण व्यवस्था कार्य के आधार पर था। इसमें व्यक्ति के प्रकृति के अनुरूप कार्य सौंपा जाता था।
- ब्राह्मण– अध्ययन-अध्यापन एवं धार्मिक कृत्यों का संपादन के कार्य को करने वालों को ब्राह्मण कहा जाता था।
- क्षत्रिय– रक्षा से संबंधित कार्य करने वाले लोगों को क्षत्रिय कहा जाता था।
- वैश्य– व्यवसाय एवं उत्पादन से संबंधित कार्य करने वाले लोगों को वैश्य कहा जाता था।
- शुद्र– सेवा संबंधित कार्य करने वाले लोगों को शुद्र कहा जाता था।
कालांतर में वर्णव्यवस्था जाति व्यवस्था का रूप ले लिया, जहाँ अलग-अलग काम करने वाले लोगों को अलग-अलग जाति के नाम से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, लोहे का काम करने वाला लोहार। लकड़ी का काम करने वाला बढ़ई, इत्यादि।
जाति व्यवस्था में अवसरो और अधिकारों का असमान वितरण था। जहाँ ब्राह्मणों के पास अधिक अधिकार थे, क्षत्रिय के पास उनसे कम, वैश्य के पास उनसे कम एवं अंत में शुद्र के पास बहुत ही कम अधिकार थे। इसके आलावा उन पर ढेरों निर्योग्यता एवं बंधन लाद दी गई थी।
भारत में जाति व्यवस्था (caste system) के लक्षण
भारत में जाति व्यवस्था के निम्नलिखित लक्षण है-
- भारतीय समाज का खंडात्मक विभाजन।
- जन्मजात सदस्यता।
- अंतर्विवाह के नियम।
- जन्मजात और प्रतिबंधित पेशा
- खानपान एवं सामाजिक संबंध या सामाजिक सहवास से जुड़े प्रतिबंध।
- विशेषाधिकार एवं निर्योग्यताएं।
- सौपानिकता
जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन
- भारतीय समाज के खंडात्मक विभाजन के लक्षण में कुछ विशेष बदलाव नहीं आया है।
- जन्मजात सदस्यता के लक्षण में भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
- अंतर्विवाह के नियम में कुछ विशेष बदलाव नहीं देखने को मिला है। हालांकि, उपजातीय अंतर्विवाह में थोड़ा बदलाव देखने को मिला है।
- प्रतिबंधित एवं निश्चित पेशा या जन्मजात पेशा पूरी तरह से बदल गई है।
- खानपान एवं सामाजिक संबंध से जुड़े नियमों में परिवर्तन हो गई है। हालांकि अभी भी यह कहीं-कहीं पर दिखाई देता है।
- विशेषाधिकार एवं निर्योग्यता में परिवर्तन।
- सोपानिकता अर्थात सोपान क्रम में परिवर्तन देखने को मिला है
आधुनिक परिवर्तन के कारक
- भारत में अंग्रेजों के आगमन के साथ आधुनिकता के मूल्यों में प्रसार हुआ है।
- सुधार आंदोलन– प्रत्येक प्रकार के असमानता के विरोध में मानसिकता का निर्माण, एक विचारधारा का फैलाव एवं आधुनिकीकरण की एक पृष्ठभूमि तैयार हुई है। तब जाकर भारतीय समाज में स्वतंत्रता, समानता की दिशा में परिवर्तन संभव हुआ एवं जाति व्यवस्था की परंपरागत असमानताएँ कम हुई है।
- दलित आंदोलन– भारत में दलितों की स्थिति को सुधारने के लिए एक बहुत बड़ा कारक रहा है। इसने न केवल दलितो की चेतना को विकसित किया है, बल्कि सरकार पर भी दबाव बनाया है- कानून बदलने, नया कानून बनाने और कानून के माध्यम से इन परंपरागत जाति असमानताओं को दूर करने, दलितों की स्थिति सुधार करने की दिशा में प्रेरित किया है।
- लोकतांत्रिक राज्य और इस राज्य के द्वारा निर्मित संविधान कानून एवं विकास योजनाएं– सरकार ने संविधान में प्रत्येक प्रकार के भेदभाव को दूर करना, प्रत्येक प्रकार के असमानताओं को खत्म करने एवं सबको सामान अवसर प्रदान करने जैसे तत्व अपने मौलिक अधिकार में शामिल किया है। इसके अलावा डीपीएसपी में राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि राज्य ऐसा काम करेगी। राज्य ने समय-समय पर कानून बनाकर इस दिशा में परिवर्तन लाने का प्रयास किया है।
- आधुनिक शिक्षा का प्रसार– अंग्रेजी काल से ही आधुनिक शिक्षा का प्रसार शुरू हुआ। आधुनिक शिक्षा के प्रसार से लोगों की सोच तार्किक व वैज्ञानिक हुई। धर्म का प्रभाव कमजोर हुआ, जाति व्यवस्था को बदलने की सोच विकसित हुई और इस दिशा में प्रयास किया गया।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास– विज्ञान वह ज्ञान होता है जो तर्क संगत तरीके से या व्यवस्थित तरीके से प्राप्त किया जाता है। जिसको जब चाहे जांचा जा सकता है। विज्ञान का सबसे बड़ा प्रभाव धर्म पर था, धर्म का तार्किक की करण हुआ। धर्म आधारित अतार्किक मान्यताएँ एवं अंधविश्वास कमजोर हुआ। विज्ञान के विकास के साथ जाति व्यवस्था के पीछे जो धार्मिक आधार था, वह कमजोर हुआ। इसके अलावा मशीनों के आविष्कार ने ढेर सारी नए-नए कार्यों को करने का अवसर दिया। फलस्वरूप, जातीय पेशा में परिवर्तन आया और इस प्रकार व्यक्ति या को नए जातीय-नए पेशा करने का अवसर मिला।
- वैश्वीकरण एवं संचार क्रांति– वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने आधुनिकीकरण के मूल्यों का प्रसार तीव्र कर दिया। यातायात एवं परिवहन नो के साधनों का इतनी तेजी से विकसित किया गया कि समय और स्थान की दूरी खत्म हो गई। आधुनिक शिक्षा के प्रसार को तीव्र किया गया। संचार क्रांति ने तो भारतीय सामाजिक जीवन को ही नहीं बल्कि जाति व्यवस्था को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया।
जाति व्यवस्था की निरंतरता
- भारतीय समाज के खंडात्मक विभाजन के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
- भारतीय समाज में जन्मजात सदस्यता के रूप में जाति व्यवस्था की निरंतरता बनी हुई है।
- अंतर्विवाह समूह के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
- सामाजिक शैक्षिक पिछड़ेपन या आरक्षण के आधार के आधार के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
- राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता प्राप्ति हेतु वोट एकत्रित करने के आधार के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
- जनता द्वारा दबाव समूह के रूप में अपने समूह के हितों के पक्ष में सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए संगठन निर्माण के आधार के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
- जातिवाद के रूप में और कुछ जातियों में जाति पंचायत के रूप में निरंतरता बनी हुई है।
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